जम्मू कश्मीर के डोडा में सोमवार रात आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ में एक अफसर समेत चार सैनिक शहीद हो गए हैं. राज्य में पिछले 78 दिनों में करीब 11 आतंकी हमले हुए हैं. केवल 30 दिनों के भीतर जम्मू में 7 आतंकी हमले हुए हैं. सोमवार रात डोडा इलाके में भारतीय सेना और आतंकवादियों के बीच हुई भीषण मुठभेड़ में सेना के एक अधिकारी समेत 4 जवान शहीद हो गए. इसके साथ ही जम्मू क्षेत्र में पिछले 32 महीनों में शहीद हुए सेना के जवानों की संख्या 48 पहुंच गई है. इसके अलावा आतंकी हमलों में 23 आम नागरिकों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. आखिर अचानक क्या हुआ है जो पिछले 5 साल से शांत इस इलाके में अचानक आतंकियों के मंसूबे बढ़ गए और सेना का नियंत्रण ढीला पड़ता दिख रहा है. लोग ऐसा क्यों कह रहे हैं कि पाकिस्तान के साथ जो युद्धविराम किया हुआ है, तुरंत उस समझौते को रद्द किया जाए. यह युद्धविराम एकतरफा और बेमानी है, क्योंकि पाकिस्तान आतंकियों की घुसपैठ कराता रहा है. आतंकियों को हथियार भी मुहैया कराता है. लोग पीएम नरेंद्र मोदी के उस बयान की भी याद दिला रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत अब घर में घुसकर मारता है. लोग कह रहे हैं कि सिर्फ आतंकी अड्डों, लॉन्चिंग पैड, प्रशिक्षण शिविरों आदि पर ही हवाई हमले करने से आतंकियों की घुसपैठ नहीं रुकेगी. पाकिस्तान की कमर ही तोड़नी होगी ताकि वह फिर सिर न उठा सके.
1-विपक्ष का केंद्र पर हमला, मोदी सरकार की खामोशी
डोडा में आतंकी हमले में चार जवानों की मौत के बाद विपक्ष केंद्र सरकार पर हमलावर है. नेता प्रतिपक्ष और वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि हमारे जवान आतंकी हमलों के शिकार हो रहे हैं, और इसके लिए सीधे तौर पर सरकार गलत नीतियां ही जिम्मेदार हैं. आतंकी जब चाहे छिपकर हमला कर दे रहे हैं. हमारे सुरक्षा बल आतंकी हमलों के शिकार हो रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार इस दिशा में कुछ भी नहीं कर रही है. बस जवानों को शहीद होते देख रही है. सबसे पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आतंकी हमलों और बालाकोट एयर स्ट्राइक को लेकर बड़ा बयान दिया है. उमर ने कहा, हमने पहले भी हमले किए थे. क्या हमले रुके? सरकार ने दंभपूर्वक बालाकोट पर हमले का दावा किया, लेकिन आतंकवादी घटनाएं नहीं रुकीं. उमर का कहना था कि बीजेपी से सवाल करिए. बीजेपी दावा करती थी कि 370 के साथ आतंकवाद जुड़ा हुआ है और अनुच्छेद 370 के हटने के बाद आतंकवादी घटनाएं खत्म हो जाएंगी. लेकिन हम कहते थे कि आतंकवाद और अनुच्छेद 370 का कुछ लेना-देना नहीं है. अनुच्छेद 370 हटाने से आतंकी घटनाओं पर कोई असर नहीं हुआ.सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, कश्मीर में सीमाओं को लेकर जितना सावधान होना चाहिए,जितने इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्ट होने चाहिए थे, वो नहीं हुए हैं. इनका इंटेलिजेंस फेलियर है, जिसकी वजह से सिक्योरिटी खतरे में है. बॉर्डर की भी सिक्योरिटी खतरे में है. बीजेपी कह रही है कि हमलों पर राजनीति ना करें. बीजेपी नेता प्रेम शुक्ला ने कहते हैं कि जवानों के बलिदान पर ये इंडिया अलायंस गिद्ध भोज करना चाहता है. भारत के नागरिक ऐसे गिद्धों को पहचानते हैं. आतंकवाद अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है. इन गिद्धों को सोचना चाहिए कि इन हमलों पर राजनीति ना करें.
2-डीजीपी के बयान से कंट्रोवर्सी
उधर जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक आर.आर स्वैन बढ़ते आतंकी हमलों को लेकर जो बयान दिया है उसको लेकर विवादों में घिर गए हैं. स्वैन ने भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा था कि नेताओं के लिए मारे गए आतंकियों के घर जाना और सार्वजनिक रूप से उनके पीड़ितों के प्रति संवेदनाएं प्रकट करना सामान्य बन गया है. स्वैन का कहना है कि पार्टियां राजनीतिक लाभ लेने के लिए आतंकी नेटवर्क के नेताओं को बढ़ावा भी दे रही है. जाहिर है उनकी उसकी बात का बुरा स्थानीय नेताओं को तो लगना ही था. घाटी में तथाकथित मुख्यधारा या क्षेत्रीय राजनीति की बदौलत पाकिस्तान ने नागरिक समाज के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं में सफलतापूर्वक घुसपैठ कर ली है. DGP के बयान पर महबूबा मुफ्ती महबूबा मुफ्ती भड़कीं हुईं हैं. उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर के पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था संभालने में विफल रहे हैं. पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था संभालने के बजाय राजनीतिक मामलों में ज्यादा रुचि लेते हैं वह पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) को तोड़ने राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को परेशान करने पत्रकारों को तंग करने में ही ज्यादा व्यस्त रहते हैं.
उन्होंने कहा कि बीते 32 माह में विभिन्न आतंकी हमले में 50 सैन्य कर्मी वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं लेकिन पुलिस महानिदेशक पतंग की हिंसा पर काबू पाने में असमर्थ रहे हैं वह सिर्फ अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने में लगे रहते हैं. महबूबा मुफ्ती ने पुलिस महानिदेशक पर सांप्रदायिक भावना से ग्रस्त होने का भी आरोप लगाया. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भी डीजीपी के बयान की निंदा की है.
3-विधानसभा चुनाव और AFSPA के खात्मे का क्या होगा?
जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाने के बाद 3 साल शांतिपूर्ण रहे , जिसके चलते केंद्र सरकार लोकसभा चुनाव के बाद जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों की तैनाती योजनाबद्ध तरीके से कम करने के बारे में सोच रही थी. इसके सात ही सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (AFSPA) हटाने पर भी विचार हो रहा था. कानून व्यवस्था से लेकर आतंक के मोर्चे पर अब जम्मू-कश्मीर पुलिस को आगे रखने की योजना पर काम हो रहा था पर अब लगता है कि इन सब योजनाओं पर पानी फिर जाएगा.
सितंबर 2024 के अंत तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का गठन भी करना था.यह पीएम मोदी का वादा भी है और सुप्रीम कोर्ट का भी आदेश था. कश्मीर में सुरक्षाबलों की वापसी से संबंधित सवाल पर गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि चुनाव के बाद इस पर काम शुरू हो जाएगा. हमने इसकी पूरी कार्ययोजना तैयार कर ली है.हमने जम्मू-कश्मीर पुलिस को मजबूत बनाया है. केंद्रीय बल उसे पीछे रहकर सहयोग करेंगे.उनका कहना था कि बीते 10 वर्ष में एक भी फर्जी मुठभेड़ नहीं हुई है और सुरक्षाबलों ने जब भी नियमों को तोड़ा या उन्होंने कहीं कोई गलत काम किया, उनके खिलाफ एफआइआर दर्ज कर कार्रवाई की गई है. शाह ने यह भी कहा था कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव सितंबर से पहले होंगे और केंद्र वहां सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम को हटाने पर विचार करेगा.
हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को उम्मीद है कि चुनाव जरूर होंगे.उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मामला है और मैं नहीं मानता कि सुरक्षा की स्थिति इतनी खराब है कि चुनाव नहीं हो सकते. हमारे यहां 1996 में चुनाव हुए हैं. 1998, 1999 में संसद के लिए चुनाव हुए हैं. मुझे लगता है कि चुनाव अवश्य होने चाहिए. कुछ नेताओं की सुरक्षा वापस लिए जाने पर उन्होंने कहा, अगर उचित एनालिसिस और उचित सुरक्षा मूल्यांकन के आधार पर ऐसा किया जाता तो यह ठीक होता.
4-क्या मोदी सरकार कोई निर्णायक कदम उठाएगी?
अभी कुछ महीने पहले की ही बात है, चुनाव से पहले, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि यह नया भारत है और यह आतंकवाद के घाव नहीं सहता. मोदी सरकार के पिछले दो कार्यकाल का रिकॉर्ड रहा है कि आतंकवाद के साथ हमेशा से कड़ा रुख अख्तियार किया गया है.जब भी पाकिस्तान ने बातचीत की पहल की भारत सरकार ने साफ कर दिया कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते. हाल के वर्षों में सेना ने जम्मू-कश्मीर में आतंकियों पर कड़ा प्रहार कर रहे थे. सीमा पर चौकसी इतनी थी कि आतंकी आसानी से भारतीय सीमा में प्रवेश नहीं कर पा रहे थे. हालांकि पिछले कुछ महीनों में परिस्थितियां बदली हैं.आतंकी हमले बढ़े हैं पर सरकार चुप नहीं बैठी है.साल 2016 में उरी आतंकवादी हमला हुआ जिसके जवाब में भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक की उसके बाद साल 2019 में पुलवामा में आतंकवादी हमला हुआ जिसके जवाब में बालाकोट एयर स्ट्राइक हुई. दोनों ही बार सरकार ने जवाब 2 हफ्तों के भीतर दिया था. इसलिए अभी कुछ दिन सरकार की ओर से होने वाले एक्शन का इंतजार करना चाहिए. कठुआ और डोडा में हुए आतंकी हमलों को लेकर सरकार गंभीर है.ये कहा नहीं जा सकता कि पाकिस्तान पर फिर से सर्जिकल स्ट्राइक कब होगा पर रक्षा सचिव के बयान को हल्के में नहीं लेना चाहिए. रक्षा सचिव गिरिधर अरमाने ने कहा है कि कठुआ हमले में पांच जवानों की मौत का बदला लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि भारत इसके पीछे छिपी बुरी ताकतों को नेस्तनाबूद करेगा.