10 बजकर 10 मिनट में क्‍या है ऐसा खास, क्‍यों हर बंद घड़ी में दिखता है यही टाइम

भारत में टाइटन से लेकर केसियो ही नहीं, रोलेक्‍स, कार्टियर और ओमेगा की घड़ियों के शौकीनों की अब कोई कमी नहीं है. इसलिए घड़ी की बड़ी-बड़ी कंपनियां अखबारों, टीवी चैनलों, होर्डिंग्‍स और दूसरे तरीकों से विज्ञापन करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही हैं. लेकिन, क्‍या आपने कभी ध्‍यान दिया है कि घड़ी के विज्ञापनों और शोरूम पर टंगीं बंद घड़ियों में 10 बजकर 10 मिनट या 2 बजने में 10 मिनट का समय ही क्‍यों सेट होता है? घड़ियों की तस्‍वीरों में भी यही समय नजर आ रहा होता है. क्‍या वजह है कि दुनियाभर में घड़ी निर्माता यही समय सेट करके पैकिंग करते हैं?

घड़ी कंपनियों से बनकर निकलने वाली बंद घड़ियों में डिफॉल्‍ट टाइम के तौर पर 10 बजकर 10 मिनट सेट करने के पीछे कई कारण हैं. शोरूम्‍स में भी घड़ियों का समय 10 बजकर 10 मिनट पर ही रुका रहता है. बता दें कि ये कोई नई परंपरा नहीं है. घ‍ड़ी बनाने वाली कंपनियां हमेशा से ऐसा ही करती आ रही हैं. इसकी सबसे पहली वजह खूबसूरती को माना जाता है. दरअसल, कंपनियों का मानना है कि जब घड़ी में 10 बजकर 10 मिनट का समय नजर आता है तो बेहद खूबसूरत लगती है. इस समय पर घड़ी काफी आकर्षक नजर आती है. वहीं, इस समय पर कोई भी सुई एक दूसरे को ओवरलैप नहीं करती है.

प्रचार और विक्‍ट्री से जुड़ा है इस समय का कारण
बंद घड़ियों में यही समय सेट करने की दूसरी वजह कंपनी के प्रचार से जुड़ा है. दरअसल, 10:10 बजने पर सुइयां कुछ इस तरह से सेट होती हैं कि कंपनी का लोगो और नाम स्‍पष्‍ट दिखाई देता है. ज्‍यादातर घड़ियों में कंपनी का लोगो और नाम बीचों-बीच लिखा होता है. सुइयों को इस समय पर सेट करने से दोनों ही चीजें छुपता नहीं है. अब इसकी तीसरी वजह जानते हैं. घड़ी के विज्ञापन में 10 बजकर 10 मिनट पर सुइयां विक्ट्री का साइन बनाती हैं. आपने देखा होगा कि लोग जब किसी काम में सफल होते हैं तो हाथों की पहली दो उंगलियों को उठाकर V साइन बनाने हैं. इस समय पर घड़ी का समय ऐसा ही नजर आता है.

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