दिल्ली: इंसान कितना भी कमीना हो जाए…आखिर है तो खुदा का बंदा, रे….सरदार खान नाम है हमारा…..दमदार एक्टिंग, डाउन टू अर्थ. हम बात कर रहे हैं मनोज बाजपेयी की, जो हिंदी सिनेमा का जाना माना नाम है. वह बेहतरीन एक्टर के साथ एक बेहतरीन इंसान भी है. एक्टर की फैन फोलोइंग लाखों करोड़ों में है. अपनी एक्टिंग के दम पर फिल्म इंडस्ट्री में अलग पहचान बनाई है और लेकिन उन्हें करियर की शुरुआत में काफी दिक्कतें हुईं. एक समय था जब माया नगरी में एक्टर के लिए पैर जमाना नामुमकिन सा हो गया था. कई बार रिजेक्शन झेलने के बाद सुसाइड तक के बारे में उन्हें ख्याल आने लगे थे.
अपनों ने ही नहीं दिया साथ
मनोज बाजपेयी का जन्म बिहार के पश्चिमी चंपारण के छोटे से गांव बेलवा में 23 अप्रैल, 1969 को हुआ था. बचपन से ही उनके दिल में एक्टर बनने का जुनून सवार था. बिहार के बेतिया जिले से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 17 साल की उम्र में दिल्ली आ गए. जब मनोज ने अपने घर में बताया की वह एक्टर बनना चाहते हैं, तो रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने उनका खूब मजाक बनाया था.
कई बार हुए रिजेक्ट
एक इंटरव्यू में खुलासा करते हुए मनोज बाजपेयी ने बताया था, ‘उन सभी लोगों की तरह, जो मुंबई बड़े सपने लेकर आते हैं और संघर्ष करते हैं, मैंने भी अपने हिस्से का स्ट्रगल, चिंता, निराशा का एक लंबा दौर देखा है. उस समय एक असिस्टेंट डायरेक्टर को अपनी फोटो दी जाती थी, जो उसे तुरंत आपके सामने कूड़ेदान में फेंक देता था. कई बार रिजेक्शन का सामना किया है मैंने.
सुसाइड करने के आने लगे थे ख्याल
मनोज बाजपेयी की लाइफ में एक ऐसा समय भी आया, जब वो सुसाइड करने के बारे में सोचने लगे थे. करियर की शुरुआत में एक्टर काफी परेशान रहे पैसों से भी और हालातों से भी. काफी संघर्षों के बाद भी जब उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी, तो एक्टर ने खुदकुशी करने के बारे में सोचा. करीब चार साल तक मेहनत के बाद पहली बार टीवी सीरियल ‘स्वाभिमान’ में उन्हें काम करने का मौका मिला था.
‘सत्या’ ने दिलाया पहला नेशनल अवॉर्ड
टीवी सीरियल में काम करने के बाद एक्टर को फिल्मों में एंट्री करने का मौका मिला. साल 1998 मे राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘सत्या’ से मनोज बाजपेयी को पहचान मिली. इस फिल्म के लिए उन्हे बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का नेशनल पुरस्कार भी दिया गया था.